राम की शक्ति पूजा । विश्लेषण ।
पिछले समीक्षा में मैंने हिंदी साहित्य में लम्बी कविताओं के विकास के संदर्भ में अपनी बात रखी थी, तत्पश्चात उसी के साथ साथ मैं "असाध्य वीणा" के ऊपर भी चर्चा किया था । आज के इस पोस्ट में मैं बात करूँगा, हिंदी के सर्वाधिक चर्चित कवियों में से एक एवं हिंदी पट्टी के युवाओं के बीच खासा लोकप्रिय कवि सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' द्वारा रचित "राम की शक्ति पूजा" पर । इस पोस्ट में मैं प्रयास करूँगा कि अपनी बात "राम की शक्ति पूजा" के प्रथम 18 पंक्तियों तक सीमित रखकर इसे बहुत लंबा एवं उबाउं होने से बचा सकूँ ।
"राम की शक्ति पूजा" पर आने से पहले मैं आपसे निराला के बारे में थोड़ी सी जानकारी प्रेषित करने का प्रयास करता हूँ । 【 सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' का जन्म बंगाल की महिषादल रियासत (जिला मेदनीपुर ) में माघ शुक्ल ११, संवत् १९५५, तदनुसार २१ फ़रवरी, सन् १८९९ में हुआ था। वसंत पंचमी पर उनका जन्मदिन मनाने की परंपरा १९३० में प्रारंभ हुई। उनका जन्म मंगलवार को हुआ था। जन्म-कुण्डली बनाने वाले पंडित के कहने से उनका नाम सुर्जकुमार रखा गया। उनके पिता पंडित रामसहाय तिवारी उन्नाव (बैसवाड़ा) के रहने वाले थे और महिषादल में सिपाही की नौकरी करते थे। वे मूल रूप से उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के गढ़ाकोला नामक गाँव के निवासी थे।
निराला की शिक्षा हाई स्कूल तक हुई। बाद में हिन्दी संस्कृत और बाङ्ला का स्वतंत्र अध्ययन किया। पिता की छोटी-सी नौकरी की असुविधाओं और मान-अपमान का परिचय निराला को आरम्भ में ही प्राप्त हुआ। उन्होंने दलित-शोषित किसान के साथ हमदर्दी का संस्कार अपने अबोध मन से ही अर्जित किया। तीन वर्ष की अवस्था में माता का और बीस वर्ष का होते-होते पिता का देहांत हो गया। अपने बच्चों के अलावा संयुक्त परिवार का भी बोझ निराला पर पड़ा। पहले महायुद्ध के बाद जो महामारी फैली उसमें न सिर्फ पत्नी मनोहरा देवी का, बल्कि चाचा, भाई और भाभी का भी देहांत हो गया। शेष कुनबे का बोझ उठाने में महिषादल की नौकरी अपर्याप्त थी। इसके बाद का उनका सारा जीवन आर्थिक-संघर्ष में बीता। निराला के जीवन की सबसे विशेष बात यह है कि कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी उन्होंने सिद्धांत त्यागकर समझौते का रास्ता नहीं अपनाया, संघर्ष का साहस नहीं गंवाया। जीवन का उत्तरार्द्ध इलाहाबाद में बीता। वहीं दारागंज मुहल्ले में स्थित रायसाहब की विशाल कोठी के ठीक पीछे बने एक कमरे में १५ अक्टूबर १९६१ को उन्होंने अपनी इहलीला समाप्त की । ।1।
आधुनिक हिंदी कविता में ‘सूर्यंकांत त्रिपाठी ‘निराला’ अपना एक विशिष्ट स्थान रखते हैं। वे आधुनिक युग के सर्वांधिक मौलिक क्षमता से सम्पन्न कवि हैं, इसका प्रमाण कवि का रचनात्मक वैविध्य स्वयं प्रस्तुत करता है। उपलब्धि , ओज, एवं श्रृंगार के कवि निराला ने सर्वप्रथम कविता में दृश्य , वेग एवं नाद को प्रस्तुत कर एक नए काव्य आंदोलन को जन्म दिया । कोई भी कवि या लेखक अपने समय में व्याप्त मान्यताओं, विचारधाराओं और परिस्थितियों से प्रभावित हुए बिना रचनाकर्म में प्रवृत्त नहीं हो सकता। वह अपने युग में व्याप्त विषमताओं और समानताओं को अपनी रचना में चित्रित करता है। निराला जी अपने काव्य के माध्यम से अपने युग की परिस्थितियों से समाज को अवगत कराने में पूर्ण सफल रहे हैं। वे युग-चेतन कवि है, इसका उदाहरण उनका पूँजीवाद के प्रति विद्रोह ‘कुकुरमुत्ता’ कविता में उग्र स्वर प्रत्यक्ष प्रकट हुआ है।
"राम की शक्ति पूजा" निराला की कालजयी कृतियों में से एक हैं । इस काव्य का कथानक तो प्राचीन राम कथा ही है, जिसपर आदिकवि बाल्मीकि से लेकर, तुलसीदास एवं अन्य भाषाओं में अनेक लोगों ने लिखी । इस काव्य के प्रेरणा स्त्रोत के रूप में बंग्ला में रचित "कृतिवास रामायण" को देखा जाता है, अपितु इसपर तुलसी के "रामचरित मानस" का भी स्पष्ट प्रभाव दृष्टिगोचर है । जैसा कि मैं उपर ही बता चुका हूँ कि इस पोस्ट के माध्यम से केवल प्रथम 18 पंक्तियों के बारे में चर्चा करने का प्रयास है । यह कविता एक नाटकीयता के साथ शुरू होती है, और कविता में पहली बार भाषण शैली में एक वाचक कथा कहता है जिसके बाद यह कविता मुख्य रूप से शुरू होती हैं ।
यह कविता शुरू होती हैं -
लौटे युग - दल - राक्षस - पदतल पृथ्वी टलमल,
बिंध महोल्लास से बार - बार आकाश विकल।
लेकिन इससे पहले प्रथम 18 पंक्तियों की अगर बात करें तो इसमें राम-रावण युद्ध की भीषणता का वर्णन मिलता हैं । इसके प्रथम 18 पंक्तियों में केवल एक क्रिया पद, एवं सम्पूर्ण 18 पंक्तियों में लंबे लम्बे सामासिक पदों का इस्तेमाल हैं । इन 18 पंक्तियों की शक्ति को आप इस बात से अंदाजा लगाइये, कि बाल्मीकि ने जो बात 102-208 सर्गों में, (पंक्तियों में नहीं) उसे निराला 18 पंक्तियों में बांध देते हैं ।
'रवि हुआ अस्त' अपने आप मे एक सम्पूर्ण काव्य के समान हैं । इसके अर्थ को जब हम समझने का प्रयास करते हैं तब हमारे सामने कई तरह के बिम्ब सामने आते हैं । आइये एक एक कर हम इनको समझने का प्रयास करते हैं ।
पहला सन्दर्भ यह कि शाम की बेला है, रवि अस्त हो चुका है, दोनों ही दल के लोग अपने-अपने शिविर में वापिस आ चुके हैं । आज के युद्ध में शक्ति रावण के तरफ से युद्ध कर रही थी । राम को अपना पराजय दिख रहा है । लेकिन इन सबके बीच ही
वारित - सौमित्र - भल्लपति - अगणित - मल्ल - रोध,
गर्ज्जित - प्रलयाब्धि - क्षुब्ध हनुमत् - केवल प्रबोध,
हनुमान के अंदर चेतना है, और वह सबको इस अंधकार से बाहर निकालने में सक्षम हैं ।
दूसरा सन्दर्भ यह है कि राम सूर्यवंशी है, औऱ राम के आज के पराजय के कारण उस सूर्यवंश का सूरज आज डूब गया हैं । अगर शक्ति राम के तरफ नहीं आएगी तो राम का पराजय निश्चित हैं ।
तीसरा सन्दर्भ गाँधी से है । गाँधी से वैचारिक मतभेद होने के बाद भी निराला गाँधी से अत्यधिक प्रभावित हैं । वह गाँधी से इस तरह प्रभावित हैं गाँधी की तुलना राम से करते हैं, औऱ उनके एक आंदोलन वापिस लेने से इतने क्षुब्ध हो जाते हैं कि वह गाँधी को कहते हैं कि 'रवि हुआ अस्त ।' गाँधी और राम की समानता इस कारण है कि जिस प्रकार राम अपने वनवास के समय सभी पिछड़े को लेकर (बानर, भालू, रीछ आदि) , वंचितों को लेकर(सबरी, विभीषण), उनकी सहायता से रावण पर विजय पाते हैं, उसी तरह गाँधी भी वंचितों, शोषितों को लेकर आगे आते हैं और स्वतंत्रता संग्राम के बिगुल बजाते हैं ।
चौथा सन्दर्भ उनका खुद के व्यक्तिगत जीवन का है, जिसमें एक-एक कर के अपने सम्पूर्ण परिवार को खो देने के बाद उनके जीवन का चमकता किरण लुप्त हो चुका है । उनके जीवन मे घोर अंधकार व्याप्त हो चुका है और यह शक्ति पूजा उनके व्यक्तिगत जीवन की शक्ति की सन्धान की कविता हैं जिसमें कवि
"शक्ति की करो मौलिक कल्पना," की बात करता है ।
पाँचवा सन्दर्भ में हम देखते है कि कहीं न कहीं निराला के सम्पूर्ण काव्य में रबिन्द्रनाथ का जबरदस्त प्रभाव देखने को मिलता हैं । तो कहीं न कहीं यह रवि भी जो अस्त हुआ है, रबिन्द्रनाथ का प्रतीक हो ।
तुलसीदास की तरह निराला न तो राम को युगपुरुष और मर्यादापुरुषोत्तम बताते हैं, न ही कृत्तिवास की तरह राम को बेबस और लाचार बताते हैं । वह राम के अंदर एक योद्धा को देखते है जो विषम परिस्थितियों से लड़ना जानता है, और कहते है "एक और मन रहा राम का, जो न थका ।" राम एक विजेता के तौर पर हमारे सामने उपस्थित होते हैं ।
निराला ने राम नाम को ही इस कविता में प्रतिपादित क्यो किया ? जबकि यह शब्द तो अपने संबोधन से ही अवतार का संबंध स्पष्ट करता है, क्योंकि मध्यकालीन साहित्यकारों ने इस नाम को अवतार के रुप में मुख्यतः दर्शाया है और वह उसी रुप में बंधा हुआ है। राम-नाम के संबंध में नंददुलारे बाजपेयी का कथन है,-‘‘ उनके सम्मुख कोई बने बनाये आदर्श या नपे-तुले प्रतिमान न थे, इसलिए जो कुछ भी उन्हें उदाहरणों में अच्छा और उपयोगी दिखायी दिया, उसी को वे नये साँचे में ढालने लगे। राम और कृष्ण उनके सर्वाधिक समीपी और परिचित नाम थे, अतएव इन्हीं चरित्रों को उन्होंने अपने नए सामाजिक आदर्शों की अनुरुपता देने की ठानी।’’ लेख स्वतः ही स्पष्ट कर रहा है कि निराला के सम्मुख प्राचीन आदर्श प्रतिमानों को छोड़कर नवीन आदर्श रुप में कोई प्रतिमान नहीं आया था, इसलिए उन्होंने यहाँ राम-नाम को तो उद्धृत किया है, किन्तु नवीन रुप में, क्योंकि ये राम अवतारी राम नहीं बल्कि संशय युक्त मानव, अपने समय का साधारण मानव है जो अपने समय की परिस्थितियों से अवसाद ग्रस्त भी है:-
‘‘जब सभा रही निस्तब्धः राम के स्तिमित नयन
छोड़ते हुए, शीतल प्रकाश खते विमन
जैसे ओजस्वी शब्दों का जो था प्रभाव
उसमें न इन्हें कुछ चाव, न कोई दुराव,
ज्यों हो वे शब्द मात्र, - मैत्री की समनुरुक्ति,
पर जहाँ गहन भाव के ग्रहण की नहीं शक्ति।’’
निराला की इस कविता का रचना काल सन् 1936 है अर्थात् प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात का समय। इस कविता में युद्ध के मध्य उत्पन्न मानसिक प्रक्रिया है, जिसमें राम के चरित्र के रुप में केवल मानवीय रुप उभरकर पग-पग पर सामने आया है, जो प्राचीन रामकथा की रुढ़ियों को तोड़ नवीन दृष्टिकोंण को परिभाषित कर रहा हैः-
‘‘ स्थिर राघवेन्द्र को हिला रहा फिर-फिर संषय,
रह रह उठता जग जीवन में रावण-जय-भय; ’’
‘‘ कल लड़ने को हो रहा विकल वह बार-बार
असमर्थ मानता मन उद्यत हो हार-हार।’’
‘‘ भावित नयनों से सजल गिरे दो मुक्ता दल,’’
‘‘ बोले रघुमणि-‘‘ मित्रवर , विजय होगी न समर,’’
‘‘अन्याय जिधर, हे उधर शक्ति ! ‘‘कहते छल-छल
हो गये नयन , कुछ बूँद पुनः ढलके दृगजल,
रुक गया कण्ठ।’’
स्पष्ट है कि निराला ने अपनी कविता में मनोवैज्ञानिक भूमि का समावेश कर उसे एक नवीन दृष्टिकोंण दिया है। बंगला कृति ‘कृतिवास’ की कथा शुद्ध पौराणिकता से युक्त अर्थ की भूमि पर सपाटता रखती है, लेकिन निराला ने यहाँ अर्थ की कई भूमियों का स्पर्श किया और उसमें युगीन-चेतना, आत्मसंघर्ष का भी बड़ा प्रभावशाली चित्र प्रस्तुत किया है।
नाटकीयता के संदर्भ में यदि देखा जाये तो निराला ने उसका भी प्रभाव उक्त कविता में बिखेरा है, जो पूर्व में किसी अन्य कवि ने अपने काव्य में वर्णित नहीं किया। संपूर्ण हनुमान का परिदृश्य आधुनिक नाटकीय दृष्टिकोंण का नमूना है, जो विकरालता और प्रचण्डता का रुप धारणकर सामने आया है।निराला ने प्रकृति को रीतिकालीन कवियों की भाँति कामनीय रुप में न चित्रित कर उसे शक्तिरूपा दुर्गा के रुप में ढाला है। नवीन प्रयोग के रुप में निराला ने भूधर को पुरुष का प्रतीक न दिखाकर पार्वती के रुप में चित्रित कर नवीन दृष्टिकोंण दिया है:-
‘‘सामने स्थिर जो यह भूधर
शोभित-शर-शत -हरित-गुल्म-तृण से श्यामल सुन्दर
पार्वती कल्पना है इसकी, मकरन्द-बिन्दु ,
गरजता चरण-प्रान्त पर सिंह वह नहीं सिन्धु
दशदिक -समस्त है हस्त। ’’
इस प्रकार हम देखते हैं कि ‘राम की शक्ति-पूजा’ में निराला ने अपनी मौलिक क्षमता का समावेश किया है। इसमें कवि ने पौराणिक प्रसंग के द्वारा धर्म और अधर्म के शाश्वत संघर्ष का चित्रण आधुनिक परिवेश की परिस्थितियों से संबंद्ध होकर किया है। कवि ने मौलिक कल्पना के बल पर प्राचीन सांस्कृतिक आदर्शों का युगानुरुप संशोधन अनिवार्य माना है। यही कारण है कि निराला की यह कविता कालजयी बन गयी है।
निष्कर्ष :- यह कविता अपने छोटे से प्रारूप में जीवन की वह सिख देती है जिससे प्रत्येक मनुष्य को गुजरना पड़ता है एवं प्रत्येक मनुष्य का मन उसी तरह हार मान लेता है लेकिन वहीं जब अपने शक्ति की मौलिक कल्पना करता है, इंसान तब शक्ति उसके तरफ हमको दिखती हैं, उसके तरफ प्रतीत होती हैं और मनुष्य अविजित से लगने वाले कार्य को सहजता पूर्वक कर लेता हैं ।

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