मुंशी प्रेमचंद को मेरा ख़त

 आदरणीय प्रेमचंद जी

सादर प्रणाम

                  हमलोग यहाँ मस्त हैं, आशा करता हूँ आप भी जहाँ होंगे वहाँ सकुशल होंगे । जानते है, हमलोगों ने आज हिंदी दिवस मनाया । अरे ! आप नहीं जानते ? आज के दिन बहुत से लोगों ने अलग-अलग तरह से इसे मनाया । किसी ने अंग्रेजी में लम्बा लेख लिखकर हिंदी दिवस की हमें शुभकामनाएं भेजी, अब आप ही बताइये मैं भला क्या करता ? मैंने भी उनको सेम टू यू कह दिया । एक ने तो कहा कि हिंदी की दुर्गति का कारण हिंदी के लेखक लोग है । जानते है उन्होंने इसके पीछे कारण क्या बताया, बोले कि जब तक हिंदी के लेखक लोग बिना पैसा लिए लिखते रहेंगे, तबतक हिंदी का महत्व लोग नहीं समझेंगे । मतलब अब आप ही बताइये कभी आप  पैसा के लिए लिखे थे ? फिर जब आप पैसा के लिए नहीं लिखे तब भी आपको इतना पढ़ा जाता है । जबकि आपने तो लोगों की पीड़ा लिखा करते थे । आपको होरी, गोबर, हल्कू यहाँ तक कि झबरा की पीड़ा दिखती थी, लेकिन इनको अठन्नी भर के प्रेम कहानी के आगे कुछो नहीं दिखता । एक उपन्यास लिखे हैं वो शायद, लगता हैं ठीक ठाक बिकी नाही तो खिसियानी बिल्ली बन गए कि हिंदी के लेखक लोग अपना कीमत तय नहीं कर पा रहे । अरे आप ही बताइये, हिंदी के लेखक लोग कोई बाजार के परवल है, जो इनका कीमत तय किया जाए । 

        एक आलोचक को भी देखा आज, बताइये दाढ़ी ऐसे बढ़ाये थे लग रहा था, द्रोणाचार्य बनकर ही दम लेंगे । कह रहे थे कि पता नहीं हिंदी को क्या-क्या हो गया है । अब आप बताइए कुछ हुआ है, हिंदी तो वैसे ही अनवरत चल रहा है न ?  आप बताइए न आलोचकों को कि हिंदी आलोचना ऐसे नहीं की जाती । आप तो रामचंद्र शुक्ल से मिले थे, अब बताइये इनलोगों को कि वो किस तरह से आलोचना करते थे । आलोचना और बैर में अंतर होता है । बताइये न । 

          जानते हैं आजही एक चीज़ और देखा, बहुत लोग स्टेटस लगाए थे, हिंदी दिवस का । लेकिन कल से सब फिर से "हाय ड्यूड, हाउ आर यू" पर आ जाएँगे । दादा, हमको दुःख इस बात का नहीं है कि ये लोग अंग्रेजी में बात करते हैं, दुःख तो इस बात से है कि ये दिखावा करते हैं । 

            दादा, कोई बढ़िया सा उपाय बताइये, इनसब से छुटकारा पाने के लिए । बाकी सब खैरियत हैं, वहाँ सबको मेरा प्रणाम कहिएगा और आशीर्वाद में हमको ताकत दीजियेगा कि हम आपलोग जो काम अधूरा छोड़कर गए थे उसे पूरा करने में अपना थोड़ा सा योगदान दे सकूँ । बाकी बात अगले ख़त में । 

     पत्र मिलते ही जबाब दीजियेगा । आपके ख़त के इंतजार में.......




आपका बाबू

उज्ज्वल सिंह 'उमंग'

काशी हिंदू विश्वविद्यालय 

टिप्पणियाँ

  1. बहुत बढ़िया मित्र
    इस शैली पर और लिखने कि जरूरत है मैंने भी कोशिश की है लेकिन मेरी लेखनी व्यंग्य नहीं उपज पाती ,
    बस मार्ग दिखा पाती है

    बहुत बहुत शुभकामनाए

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  2. हम आपको धन्यवाद कहते है...
    पर मुंह नहीं खोलेंगे..
    बस आप सुन लेना... इंग्लिश वाली के खिलाफ...

    जवाब देंहटाएं

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