चाचा नेहरू को मेरा ख़त

आदरणीय चाचा नेहरू

सादर प्रणाम

             मैं यहाँ अबतक सकुशल हूँ और आशा करता हूँ कि आप जहाँ होंगे वहाँ कोरोना प्रबंधन ठीक से किया गया होगा जिस कारण आप पूर्णतः निरोग होंगे । 

             मैं आपको ख़त इसलिए लिख रहा हूँ क्योंकि हमारे निज़ाम आजकल कुछ कार्य विशेष में व्यस्त है जिसके कारण हमलोगों के जान पर बन आई है, लेकिन अच्छी बात यह है कि उन्होंने अभी तक इस कारण से आपका नाम लेकर इसका जिम्मेदार आपको न ठहराया हैं । मैं कहीं पढ़ा था कि जब आप भी अपने सत्ता के मोह में फँसे हुए थे तब दिनकर जी ने आपको सम्बोधित करते हुए कहा था -

"मरघट में तू साज रही दिल्ली कैसे श्रृंगार?

यह बहार का स्वांग अरी इस उजड़े चमन में!"


      आपके समय स्थिति और थी, लेकिन आज स्थिति बहुत भिन्न है, कुछ रक्तपिपासु लोगों के मुँह खून लग चुका है और जनता को मरते देख उन्हें अंदर ही अंदर प्रसन्नता हो रही, वह अपने इस जीत का जश्न मना रहे हैं । कुछ समय में ही कुछ राज्यों के चुनाव परिणाम आएगा, उसके बाद तो इनका नग्न रूप सबके सामने आ जायेगा । 

         चाचा जी, स्थिति और भयावह इसलिए जान पड़ती है क्योंकि इस काम में वो अकेले नहीं है, उनके कई भागीदार है इसमें । अभी इस भयावह माहौल में सब मिलकर काम करने के बजाय अपना हिस्सा लूटने के लिए सब एक दूसरे पर छीना-झपटी किये हुए हैं । 

         बाकी सब ठीक है, अपना ख़्याल रखियेगा और हाँ, मास्क पहनियेगा और दूसरे से दो गज की दूरी बनाकर रखियेगा । आत्मनिर्भर हम बन ही रहे हैं (स्वयं के प्रयासों से अपनों को बचाने के लिए, क्योंकि सरकार तो हमें आत्मनिर्भर बनने के लिए पहले ही कह चुकी थी ) , और हमारा संकल्प शक्ति भी बहुत दृढ़ है । 



                                                     आपका अपना

                                                उज्ज्वल सिंह 'उमंग'

                                                     शोधार्थी एवं पत्रकार



टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

राम की शक्ति पूजा । विश्लेषण ।

असाध्य वीणा

हिंदी नाटकों के विकास में भारतेंदु हरिश्चंद्र का योगदान