मीरा का काव्य: स्त्री जीवन के बंधनों का दस्तावेज
मीरा का काव्य: स्त्री जीवन के बंधनों का दस्तावेज
कु. प्रतिभा
शोध छात्रा
हिंदी और अन्य भारतीय भाषा विभाग
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी
भारतीय साहित्य के इतिहास भक्ति आंदोलन के साथ पहली बार कविता के क्षेत्र में सशक्त स्त्री स्वर सुनाई पड़ता है। हिंदी में मीरा का वही स्थान है जो तमिल में अंडाल का, कन्नड़ में एक अक्कमहादेवी का, कश्मीर में ललय का और मराठी में बहिणाबाई और मुक्ताबाई का। मीरा की कविता में स्त्री की आत्मा की ऐसी आवाज है जो पराधीनता के बोध से बेचैन और स्वाधीनतना की आकांक्षा से प्रेरित स्त्री की आवाज है। वस्तुतः हिंदी,राजस्थानी और गुजराती तीनों की त्रिवेणी में नहाई हुई मीरा की कविता नारी चेतना की सशक्त दस्तावेज है।
अपनी सामाजिक अस्मिता को त्यागकर व्यक्तिगत अस्मिता को आधार बनाकर यदि किसी भक्त ने भक्त रूप में विशेष ख्याति प्राप्त की है तो वह भक्त कवयित्री मीरा ही है,उनके काम में भक्ति, विरह व विद्रोह का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। यहां एक तरफ 'माधुर्य भक्ति' भी दिखता है तो दूसरी तरफ समाज के नकारात्मक रौद्र रूप, सामंती व्यवस्था, पुरुष सत्ता आदि के प्रति तीखा विरोध का स्वर भी सुनाई पड़ता है।
"मीरा के माध्यम से मध्यकालीन समाज में घुटती- कराहती, नाना प्रकार के सामाजिक अत्याचारों और पारिवारिक प्रताड़नाओं को सहती आम नारी का भी एहसास कराती हैं, उसके दुख और उसकी कलंक को भी अपने माध्यम से वाणी देती हैं, उस समाज को नंगा करती हैं, जहां नारी इतनी परवश और इतनी असहाय है कि उसका समाज के बनाए नियमों के खिलाफ उठा एक पग उसे भ्रष्ट,पतिता और बिगड़ी करार देने के लिए पर्याप्त है।"१
मीरा के काव्य में स्त्री जीवन का बंधन दिखता है और मीरा की बोली उस बंधन के गांठ पर प्रहार करती प्रतीत होती है।
मीरा के काव्य के अध्येता विश्वनाथ त्रिपाठी के अनुसार - मीरा बाबर से मोर्चा लेने वाले महाराणा सांगा की पुत्रवधू और महाराणा कुमार भोजराज की पत्नी थी। कहा जाता है कि विवाह के कुछ वर्षों के बाद जब उसके पति का देहांत हो गया तो साधु संतों की टोली में भजन कीर्तन करने लगी। इस पर उनके परिवार के लोग विशेषकर देवर राणा विक्रमादित्य बहुत रूष्ट हुए। उन्होंने इन्हें नाना प्रकार की यातनाएं दी जिससे खिन्न होकर उन्होंने राजकुल छोड़ दिया।
समाज और परिवार से प्रताड़ित मीरा एक ऐसे भगवान का वरण करती है जिन्होंने सामंती परिवेश में रहकर समाज की संपूर्ण मर्यादाओं को तोड़ने की कोशिश की थी। इसलिए मीरा ने अपनी जीवन रक्षा के लिए कृष्ण की पुकार लगाई थी। मीरा खुद को कृष्ण के प्रति समर्पित कर देती है-
"इन चरण कालियां णाथ्यां गोपी लीला करण
इण चरण गोवर्धन धार्ंया गरब मधवा हरण
दासि मीरां लाल गिरधर अगम तारण तरण..."२
मीरा की भक्ति माधुर्य भाव की या मधुरा भक्ति है। उन्होंने अपने इष्ट देव को प्रेमी या पति के रूप में देखा है।
"मीरा ने कृष्ण के प्रति प्रेम का जो चित्रण किया है वह एक ऐसी नारी का चित्रण है जिसके प्रेम में समाज कदम-कदम पर बाधा पहुंचाता है। वह मीरा को बरजता है, हटकता है और जब मीरा नहीं मानती है तो उन्हें 'भटकी' या बिगड़ी घोषित कर देता है।"३
मीरा अपने इष्ट को समर्पित कविता लिखती है, प्रथम दृष्टया या भक्ति कविता प्रतीत होती है किंतु "मीरा की कविता केवल भक्ति कविता नहीं है, यह भक्ति से पहले सामंती मर्यादा और दमन के विरुद्ध एक सामान्य स्त्री के विद्रोह की लौकिक अभिव्यक्ति है।"४
मीरा मध्ययुगीन समाज की एक ऐसी विधवा स्त्री है, जिसे समाज अपने बनाए मानदंडों के अंदर रखकर बांधना चाहता है। समाज नारी का ऐसा आदर्श रूप सामने देता है इसके अनुसार परंपरा, रीति- रिवाज,पर्दा,मर्यादा आदि के नाम पर खुद को अग्निकुंड में समर्पित कर देने वाली स्त्री ही देवी है।समाज के बाहरी लोगों के साथ घर वाले भी एक विधवा स्त्री के साथ संवेदना - प्रेम भाव को समझने, सौहार्द रखने की बजाय इसके शत्रु बन जाते हैं। मीरा कहती है :
"लोग कह्या मीरा बावरी,सासु कह्या कुलनासा री
विख रो प्यालो राणा भेज्यां, पीवां मीरा हांसां री।"५
मीरा का पूरा जीवन ही जूझने और संघर्ष करने का है जो गाहे - बगाहे भाग है उनकी काव्य में प्रकट होता रहता है। मीरा परंपराओं का वहन करने वाली नारी नहीं थी। वो किसी के हाथों की कठपुतली बनकर नहीं रह सकती,वह अपनी जिंदगी अपनी शर्तों पर जीना चाहती थी। मीरा उन आदर्श नारियों के श्रेणियों में नहीं आना चाहती थी, परंपराओं, रीति-रिवाजों के नाम पर जिनके जीवन को बांध दिया जाए। दुनिया उसे कुलनाशिनी, मर्यादाहीन,पागल इत्यादि किसी नाम से पुकारे पर वह झूठी मर्यादा के नाम पर अपने बहुमूल्य जीवन को समर्पित नहीं कर सकती थी। उन्होंने स्पष्ट कहा है कि
"राणा जी म्हाने या बदनामी लागे मीठी
कोई निंदों बिंदों,मैं चलूंगी चाल अपूठी
सांकडली सेरयां जल मिलिया क्यूं कर फिरूँ अपूठी।"६
"बदनामी से नहीं डरने वाली मीरा के लिए विष भी अमृत का काम करता है। "विष मीरा के संघर्ष में तपकर अमृत बन जाता है। जिसे अन्य विष समझते हैं वह मीरा के लिए अमृत बन जाता है। मीरा की कविता में अमृत और विष के जो इतने उल्लेख हैं,वे निश्चित रूप से उनकी भावना और जीवन आचरण के संघर्ष से बहुत गहरे तौर पर जुड़े हैं।"७
मीरा तभी स्वच्छंद हो पाई थी जब उन्होंने अपनी सारी सुख सुविधाओं को त्याग कर दिया।
"गहना गांठी राणा हमसब त्यागा, त्याज्यों कर रो चूड़ों
काजल टीकी हम सब त्याग त्याग, त्याग्यों छै बांधन जूड़ों" ९
मीरा अपने जीवन की नैया राणा के हाथों में नहीं सौंपती। वह स्वच्छंद जीवन यापन करने के लिए राणा के महल, धन- दौलत, सुख- सुविधाओं को ठुकरा देती हैं, तथा राणा द्वारा लगाए गए विभिन्न प्रकार के आरोपों को शांत करने का साहस रखती है।
"महल अटारी हम सब त्यागे, त्याग्या धांरो बसनो सहर,
काजल टीकी राणा हम सब त्याग्या भगवीं चादर पहर।" १०
सती प्रथा का विरोध करने वाली मीरा वैधव्य जीवन के सूचक काले वस्त्रों का विरोध करती है,पर्दा प्रथा का विरोध कर बाहर निकलती है। विश्वनाथ त्रिपाठी कहते हैं "मीरा भक्तिकालीन भक्त कवयित्री हैं। उनकी कविता में भक्ति भावना की अभिव्यक्ति हुई है,लेकिन वे मध्यकालीन सामंती व्यवस्था की पीड़ित नारी भक्त कवयित्री है।"११
तत्कालीन पुरुष प्रधानता समाज के साथ भक्त समाज में भी थी। भक्त कवियों में स्त्रियों को सहज स्वीकृति नहीं मिलती थी, पुरुष भक्त कवियों के बीच मीरा का काव्य भक्त कवियों के स्त्री संबंधी मान्यताओं का प्रति-उत्तर भी है। उनका काव्य पूर्णतः असांप्रदायिक है जिसमें किसी भी संप्रदाय विशेष के दार्शनिक प्रवृत्तियों को रेखांकित करने के विपरीत नारी हृदय में एकांत निवेदन का स्वर प्रस्फुटित हुआ है। अपना इरादा बताते हुए राजा को अपने आप से मतलब रखने में हेतु मीरा कहती है -
"जैसे कंचन दांत अग्नि में, निकसत वारावाणी।
लोक लाज कुल काण जगत की, दई बहाय जस पाणी।
अपने घर का पर्दा करले,मैं अबला बौराणी।"१२
मीरा के काव्य में जब प्रेम की अभिव्यक्ति होती है तो वो बिना किसी रूपक के या पर्दा के सीधी बात करती हैं।वो राणा का सीधा नाम लेती है ''राणा जी थे जहर दियो म्हे जाणी..."
मैनेजर पांडे कहते हैं -
"भक्ति काल के कवियों में मीराबाई का प्रेम सबसे अधिक सहज उत्कट और विद्रोही है। उनके प्रेम के अभिव्यक्ति के लिए किसी विचवाई की जरूरत नहीं है, ना कबीर की तरह रूपक की, ना जायसी की तरह लोककथा की और सूर की तरह गोपियों की। वहां सीधा और प्रत्यक्ष प्रेम निवेदन है, निर्भय और निर्द्वन्द आत्माभिव्यक्ति।"१३
मीरा के काल में स्त्री का निजी जीवन स्पष्ट दिखता है। मीरा के पद कृष्णा या किसी सखी अथवा किसी और को भी संबोधित है तो उसमें संवादात्मकता के कारण जनबोली का तेवर मौजूद है। पदों में प्रायः स्त्रियोचित तीखापन और श्रापने की मुद्रा भी दिखलाई पड़ती है। एक सामान्य स्त्री के तरह खुद को प्रेमी के प्रति समर्पित कर देती हैं, प्रेमी पर कितनी क्षुब्ध हैं वो उनकी कविताओं में दिखता है।
"हरि चरणन की चेरी
पलक न लागै मेरी स्याम बिना।
हरि बिनू मथुरा ऐसी लागै, शशि बिन रैन अंधेरी।
पात पात वृन्दावन ढूंढ्यो, कुंज कुंज ब्रज केरी।
ऊंचे खडे मथुरा नगरी, तले बहै जमना गहरी।"१४
मीरा के काव्य में जब मिलन आता है तो मिलन सुख की कल्पना घनीभूत होकर वर्षा का रूपक धारण करती है, प्यासी धरती मीरा का व्यक्तित्व है, जिसमें भाव मिलन वर्षा है। आनंद का रूप मीरा के पास प्रायः बर्षा के रूप में ही दिखाई देता है।
"बादल देख डरी हो, स्याम, मैं बादल देख डरी
श्याम मैं बादल देख डरी/
काली-पीली घटा ऊमड़ी बरस्यो एक घरी
जित जाऊं तित पाणी पाणी हुई सब भोम हरी
जाके पिया परदेस बसत है भीजे बाहर खरी..."१५
मीरा जो कुछ भी लिखती है वो तत्कालीन समस्त स्त्री के अभिव्यक्ति है, स्त्री जीवन की सीमाओं और बंधन को मीरा ने जिस स्पष्टता से अपने काव्यों में चित्रित किया है वो आज भी प्रासंगिक प्रतीत होता है, मानो 400- 500 वर्ष पहले लिखी गई कविताएं 21वीं सदी के स्त्री जीवन को देखकर ही लिखा गया हो।
संदर्भ सूची -
१ शिव कुमार मिश्रा भक्ति आंदोलन और भक्ति काव्य पृष्ठ246
२. मीराबाई की पदावली, संकलन - परशुराम चतुर्वेदी,हिंदी साहित्य सम्मेलन,प्रयाग
३.विश्वनाथ त्रिपाठी,मीरा का काव्य
४.पल्लव, मीरा एक पुनर्मूल्यांकन, पृष्ठ 186
५.मीराबाई की पदावली, संकलन - परशुराम चतुर्वेदी,हिंदी साहित्य सम्मेलन,प्रयाग
६. वहीं.
७,विश्वनाथ त्रिपाठी,मीरा का काव्य, पृष्ठ 70
८.मीराबाई की पदावली, संकलन - परशुराम चतुर्वेदी,हिंदी साहित्य सम्मेलन,प्रयाग
९.मीराबाई की पदावली, संकलन - परशुराम चतुर्वेदी,हिंदी साहित्य सम्मेलन,प्रयाग
१०.मीराबाई की पदावली, संकलन - परशुराम चतुर्वेदी,हिंदी साहित्य सम्मेलन,प्रयाग
११.मीराबाई की पदावली, संकलन - परशुराम चतुर्वेदी,हिंदी साहित्य सम्मेलन,प्रयाग
१२.मीराबाई की पदावली, संकलन - परशुराम चतुर्वेदी,हिंदी साहित्य सम्मेलन,प्रयाग
१३.मैनेजर पांडे ,भक्ति आंदोलन और सूर का काव्य पृष्ठ 40
१४.https://bharatdiscovery.org/india
१५.http://kavitakosh.org
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