21 वीं शताब्दी, गांधीवाद और भवानी प्रसाद मिश्र की कविताएं

 21 वीं शताब्दी, गांधीवाद और भवानी प्रसाद मिश्र की कविताएं

कु. प्रतिभा 

शोध छात्रा 

हिंदी और अन्य भारतीय भाषा विभाग 

महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी

 

21वीं शताब्दी का समय भागदौड़ का समय है, जो ठहरने की फुरसत नहीं देता है, पर - हित के लिए सोचने और समझने के लिए समय निकालने को लोग जरूरी नहीं समझते हैं। एक तरफ दिन प्रतिदिन हम तकनीकी रूप से आधुनिक हो रहे हैं तो दूसरी ओर हमारी प्रकृति बिखर रही है,सामाजिकता जटिल हो रही है।हर तरफ किसी न किसी रूप में भय और संशय की व्याप्ति है। सबों को कोई न कोई डर सता रहा है। इस एवज में भविष्य के बारे में सोचने पर सब कुछ रिक्त दिखाई देता है। वहीं दूसरी तरफ जब सबों के लिए मंगल सोचा जाता है, तभी सुंदर भविष्य दिखता है।

    आज की सभ्यता और समाज के लिए के लिए अपने हित से पहले दूसरों के हित को जानना, समझना और आत्मसात करना अत्यंत जरूरी हो गया है।इस एवज में भारतीय सांस्कृतिक परंपरा में महावीर,गौतम बुद्ध से लेकर महात्मा गांधी जैसे बड़े - बड़े नाम हैं,जो दुनिया को जीवनशैली देते हैं, सोचने का एक 'पैटर्न' देते हैं, जीने का तरीका देते हैं। गांधी आधुनिक समय में पूरी दुनिया के सबसे प्रभावी लोगों में से एक हैं,उनका प्रभाव राजनीति, समाज,अर्थ जगत के साथ साथ साहित्य और कला के हर विधा में है। गांधी जी राजनीति की भाषा में मानवता की दृष्टि से जो बोलते हैं हिंदी के वरिष्ठ साहित्यकार भवानी प्रसाद मिश्र अपनी कविताओं में वहीं साहित्यिक भाषा में बोलते हैं।


मुख्य भाग

भारतीय परंपरा के जड़ में है "अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम् । उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ॥ "१. अर्थात यह अपना बन्धु है और यह अपना बन्धु नहीं है, इस तरह की गणना छोटे चित्त वाले लोग करते हैं। उदार हृदय वाले लोगों की तो (सम्पूर्ण) धरती ही परिवार है।

    भारतीय परंपरा में अपना और पराया का कोई भेद नहीं है, लेकिन महात्मा गांधी जब जन्म लिए थे वो भारतीयों का सबसे बुरा दौर था,गुलाम देश का चित्त भी सुस्त पर गया था नवजागरण ही था था उस समय देश, समाज को जागृत करने का काम किया जा रहा था, अपनी ताकत को पहचानने के लिए समाज को प्रेरित किया जा रहा था।इसमें गांधी जी का बहुत बड़ा योगदान है। "उसमें सन्देह नहीं कि नवोत्थान के भीतर से भविष्य की और प्रगति करती हुईं भारत की प्राचीन परंपरा में महात्मा गांधी के व्यक्तित्व और प्रयोग में परिणति प्राप्त की।"२

    गांधीवाद, महात्मा गांधी के विचारों और सिद्धांतों का एक समुच्चय है, जो मुख्यतः सत्य, अहिंसा, और स्वराज पर आधारित है।गांधी जी का मानना था कि किसी भी समस्या का समाधान हिंसा से नहीं, बल्कि अहिंसात्मक तरीके से ही किया जा सकता है। उन्होंने सत्याग्रह के माध्यम से संघर्ष किया, जिसका अर्थ है कि अन्याय के खिलाफ शांतिपूर्ण तरीके से खड़ा होना। "स्वाधीनता आन्दोलन के समय और बाद में भी गांधी के व्यक्तित्व और विचारों का साहित्य पर असर अनेक रूपों में है। वह कहीं मौसम का है, तो कहीं जलवायु जैसा। कहीं प्रत्यक्ष है तो कहीं व्यक्त है तो कहीं अन्तर्निहित, कहीं रचना में है तो कहीं विचार मैं, कहीं एकता के रूप में है तो कहीं विरोध के रूप में। जो लोग साहित्य में गांधी के प्रति पूजा भाव की सीधी अभिव्यक्ति की खोज करते हैं, वे उनके व्यक्तित्व और विचारों के प्रभाव की व्यापकता और बारीकी को नहीं देख पाते। गांधी जी ने लेखकों को लोक-जीवन से जुड़ने, समाज में दबे कुचले लोगों के बारे में सोचते, उपनिवेशवाद की दिमागी गुलामी से मुक्त होने, अपनी परंपरा की शक्ति को पहचानने, भारतीय समाज के रूढ़िवाद को जानने और जीवन के सभी प्रसंगों में साहसी आलोचनात्मक चेतना विकसित करने का आह्वान किया था उसका व्यापक प्रभाव हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं के साहित्य पर है।" ३

    गांधी जी ने सत्य को सर्वोपरि माना। उनका कहना था कि सत्य की शक्ति से बड़े से बड़े अन्याय को भी समाप्त किया जा सकता है। 

     गांधी का स्वराज केवल राजनीतिक स्वतंत्रता तक सीमित नहीं था, बल्कि यह आत्म-नियंत्रण और आत्म-निर्भरता का भी प्रतीक था। उन्होंने भारतीयों को अपने देश की स्वतंत्रता के लिए संगठित करने का प्रयास किया।

    गांधी जी ने जाति प्रथा, असमानता और सामाजिक अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने समाज में समानता और भाईचारे की महत्वपूर्णता को रेखांकित किया।

     उन्होंने अंग्रेजी उपनिवेशवाद के खिलाफ स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करने और विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने का आह्वान किया।

    गांधी जी का मानना था कि साधारण और संयमित जीवन जीना सबसे महत्वपूर्ण है। उन्होंने भौतिकवादी संस्कृति का विरोध किया और आत्म-निर्भरता को बढ़ावा दिया।

   गांधीवाद ने न केवल भारत में स्वतंत्रता संग्राम को प्रेरित किया, बल्कि पूरी दुनिया में मानवाधिकारों, सामाजिक न्याय और अहिंसा के सिद्धांतों को फैलाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

   "गांधीवाद की स्थापना वृहत्तर मानवता और मानवीय गुणों की स्थापना है। अपने काव्य के माध्यम से इन वृहत्तर मानवीय सरोकारों, चिन्ताओं और चिन्तन प्रक्रियाओं से जुड़कर भवानी प्रासंगिक और बड़े अर्थवान कवि सिद्ध हुए हैं।"४ भवानी प्रसाद मिश्र की कविताएँ गहन सामाजिक और राजनीतिक विषयों को छूती हैं, और उनमें गांधीवाद का महत्वपूर्ण स्थान है। उनकी रचनाओं में गांधी के विचारों, विशेषकर अहिंसा, सत्य, और समाज की सेवा के सिद्धांतों का स्पष्ट प्रभाव देखने को मिलता है।

    मिश्र की कविताएँ अक्सर अहिंसा के महत्व को रेखांकित करती हैं। वे मानते हैं कि किसी भी समस्या का समाधान हिंसा से नहीं, बल्कि संवाद और समझ से ही संभव है।

      गांधी के सिद्धांतों के अनुसार, सत्य सबसे बड़ा धर्म है। मिश्र की कविताओं में सत्य के प्रति एक गहरा लगाव और उसकी खोज दिखाई देती है।मिश्र की रचनाएँ समाज के प्रति जिम्मेदारी को उजागर करती हैं। वे गांधी के विचारों के अनुसार, समाज के कमजोर वर्गों के प्रति संवेदनशीलता को प्रोत्साहित करते हैं।

     उनकी कविताएँ सादगी की प्रशंसा करती हैं, जो गांधी का प्रमुख विचार था। स्वावलंबन और आत्मनिर्भरता के प्रति एक सकारात्मक दृष्टिकोण भी मिश्र की रचनाओं में मौजूद है।उनकी कविता "खेत" में, वे किसानों की मेहनत और संघर्ष को बयां करते हैं, जो गांधी की किसान समर्थक नीतियों का प्रतिबिंब है। वे यह संदेश देते हैं कि यदि समाज में परिवर्तन लाना है, तो इसके लिए सबसे पहले हमें अपने समाज के नींव स्तंभों, जैसे किसानों और श्रमिकों, को पहचानना होगा। भवानी सत्य को यथार्थ रूप में स्वीकार करते हैं।

"वस्तुतः/मैं जो हूँ/मुझे वहीं रहना चाहिए/यानी/वन का वृक्ष/खेत की मेड़/नदी की लहर/दूर का गीत/व्यतीत/वर्तमान में/उपस्थित भविष्य में/मैं जो हूँ मुझे/वहीं रहना चाहिए/तेज गर्मी/मूसलाधार वर्षा/कड़ाके की सर्दी/खून की लाली/दूब का हरापन/फूल की जर्दी/मैं जो हूँ/मुझे अपना होना..."५


    गांधी के तरह ही भवानी प्रसाद मिश्र भी ऐसे सत्यवादी है,जो समाज से पहले खुद की आलोचना करना जानते हैं।भवानी अपने कवि जीवन पर ही सबसे पहले आलोचना करते हैं। बाजार २१वीं शताब्दी का सबसे बड़ा सत्य है। बाजार की व्याप्ति हर जगह है,बाजार ने किसी को नहीं छोड़ा है,पिछले शताब्दी के कवि भवानी भी इससे बच न पाए थे। उन्होंने खुद की आलोचना इन शब्दों में की थी - 


    "जी, माल देखिए दाम बताऊँगा,

बेकाम नहीं है, काम बताऊंगा;

कुछ गीत लिखे हैं मस्ती में मैंने,

कुछ गीत लिखे हैं पस्ती में मैंने;

यह गीत, सख़्त सरदर्द भुलायेगा;

यह गीत पिया को पास बुलायेगा।

जी, पहले कुछ दिन शर्म लगी मुझ को

पर पीछे-पीछे अक़्ल जगी मुझ को;

जी, लोगों ने तो बेच दिये ईमान।

जी, आप न हों सुन कर ज़्यादा हैरान।

मैं सोच-समझकर आखिर

अपने गीत बेचता हूँ;

जी हाँ हुजूर, मैं गीत बेचता हूँ।"६


    आज देश सभ्य बनने के नाम पर अस्त्र-शस्त्रों का भंडारण करता जा रहा है। आज किसी देश को सभ्य कहलाने के लिये आवश्यक है कि उसके पास अत्याधुनिक अस्त्र-शस्त्र हो। आज हथियार प्रगति का परिचायक हो गया है,जिस देश के पास जितने अधिक विध्वंसक अस्त्र है, उसे उतना ही सभ्य माना जा रहा है। आज परमाणु हथियार रखे हुए देशों को विश्व में अलग सूची है, जो कद्दावर कहलाते हैं।गांधीवादी कवि अपनी कविता के माध्यम से इस सभ्यता मूल्य को बदलना चाहता है --

   "धरती/कभी न कभी/फिर सूरज से हीन/और ढंकी

हो जायेगी/सो जायेगी/ओढ़ कर मृत्यु/मनु संतान/परिस्थिति/ यह भगवान नहीं /हम खुद लायेंगे/ क्योंकि बनाये है हमने/अब तक जितने अस्त्र-शस्त्र/ उतने ही बनाकर तो/ न रह जाएंगे।"७


3.निष्कर्ष

   आज जहां विश्व के तमाम देश स्वास्थ्य, शिक्षा से पहले रक्षा बजट पर ध्यान देते हैं, कई देशों का रक्षा बजट स्वास्थ्य,शिक्षा से अधिक है। वहां गांधीवाद अधिक महत्वपूर्ण हो जाता हैं। 21वीं शताब्दी को कई दृष्टिकोणों से हानिकारक माना जा सकता है। औद्योगिकीकरण और अत्यधिक ऊर्जा खपत के कारण जलवायु परिवर्तन की समस्या बढ़ गई है, जिससे प्राकृतिक आपदाओं, सूखे, और बाढ़ जैसी घटनाएँ बढ़ रही हैं।वायु, जल और भूमि प्रदूषण में तेजी से वृद्धि हुई है, जो मानव स्वास्थ्य और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए खतरा बन रहा है।

 बढ़ती हुई तकनीकी निर्भरता से सामाजिक संबंधों में कमी आ रही है और मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ रही हैं। वैश्वीकरण ने कई देशों में आर्थिक असमानता को बढ़ाया है, जिससे समाज में तनाव और संघर्ष उत्पन्न हो रहे हैं।विश्वभर में राजनीतिक अस्थिरता और युद्ध की घटनाएं बढ़ रही हैं, जो मानव जीवन और विकास को प्रभावित कर रही हैं।

 डिजिटल युग में सूचना का अधिकतम प्रवाह हो रहा है, जिससे व्यक्तियों में भ्रम और मानसिक तनाव उत्पन्न हो रहा है।इन चुनौतियों का समाधान करना आवश्यक है,आज जरूरी है,गांधीवाद के नजरिए से सोचा जाए,चिंतन किया जाए, स्वार्थ को छोड़कर एक इंसान के नाते इंसानियत और और एक जीव के नाते पृथ्वी पर व्याप्त जीवन के बारे में सोचा जाए, समाधान किया जाए ताकि भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक सुरक्षित और स्वस्थ वातावरण सुनिश्चित किया जा सके।

संदर्भ सूची - 

१.महोपनिषद्, अध्याय 4, श्लोक 71

२.पृ० 619,620, रामधारी सिंह दिनकर, संस्कृति के चार अध्याय,लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद 1993

३.पृ० 55, 'महात्मा से चैथरिया पीर तक, लेखक मैनेज पाण्डेय, वागर्थ (अक्टूबर) 1996

४.पृ० 29, भवानी प्रसाद मिश्र, क्लदैव वंशी, साहित्य, नई दिल्ली, द्वितीय सं० 1994

५.मैं जो हूं, भवानी प्रसाद मिश्र, kavitakosh.org

६.गीत फ़रोश, भवानी प्रसाद मिश्र, kavitakosh.org

७. पृष्ठ 37,भवानी प्रसाद मिश्र, परिवर्तन जिए,प्रतिश्रुति प्रकाशन,कोलकाता

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